♦ रचनाकार: अज्ञात
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गोरे ललार दमक रही बिंदिया।
ठंडे से पानी गर्म कर लाये,
सपरें न राजा निरख रहे बिंदिया। गोरे...
सोने की थाली में भोजन परोसे,
जेवें न राजा निरख रहे बिंदिया। गोरे...
सोने की झाड़ी गंगा जल पानी,
पीवें न राजा निरख रहे बिंदिया। गोरे...
लोंगन कील-कील बीड़ा लगाये,
चावें नराजा निरख रहे बिंदिया। गोरे...
चुन-चुन कलियां सेजे लगाईं,
सोवें न राजा निरख रहे बिंदिया। गोरे...