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गौरैया: दो / असंगघोष

उड़ती हुई गौरैया
चली आती है
हमेशा की तरह
मेरे जेहन मे
चिड़ची करती
मन के कोने पर बैठ
अपने अक्स पर बार-बार चोंच मारती
चिल्ला-चिल्ला कर कहती मुझसे
निकल जाओ यहाँ सिर्फ में रहूँगी
तुम्हारे जैसे
अस्थिर अन्तर्मन की मुझे जरूरत नहीं है।