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गौरैया अब आती नहीं / सुदर्शन रत्नाकर

वह जो भूरे-पीले पंखों वाली
नन्ही गौरैया
रोज आती थी मेरे आँगन में
अब आती नहीं,
सूरजमुखी का पराग
चुन चुन कर खाती नहीं
ना ही,
पेड़ की फुनगी पर बैठ कर
झूला झूलती है,
सूर्य उगने में प्रतीक्षा रत
बैठी रहती है छत की मुँडेर पर।
मेरे घर में अब धूप नहीं उतरती
किरणें करती हैं आँख मिचौली बस
आँगन के सारे सूरजमुखी मुरझा गए हैं,
पत्तियाँ लहलहातीं नहीं और
दीमक लगे पेड़ की शाखाएँ
सूख गई हैं,
इसलिए वह जो भूरे-पीले पंखों वाली
नन्ही गौरैया,
मेरे आँगन में आती थी
अब आती नहीं।