थोड़ी आज कमर मटका
गौरैया तू नाच दिखा।
याद नहीं कब से ना देख
तुझे नाचते मैंने।
तेरे सुस्त हो गए लगता
अब फुर्तीले डेने।
बहुत दिनों से आई ना क्यों,
दाना पानी लेने।
आसमान के हाल चाल की,
कोई सूचना देने।
ना डर, यहाँ नहीं खटका।
गौरैया तू नाच दिखा।
गावों के घर में तो भीतर,
कमरे तक आती थी।
बिना डरे ही थाली में से,
दाना खा जाती थी।
और ज़रा से संशय से ही,
फुर्र-फुर्र उड़ जाती।
कभी-कभी कमरे में ही तू,
कत्थक नाच दिखातीं।
आज दिखादे फिर लटका।
गौरैया तू नाच दिखा।
बिना डरे ही मिलले मुझसे,
आजा हाथ मिळाले।
फुर्र-फुर्र उड़ने की विद्या,
मुझको भी सिखलादे।
आसमान के कितने पंछी,
पक्के मित्र तुम्हारे।
मुझे बतादो क्या खाते हैं,
क्या पीते बेचारे।
सच्ची-सच्ची बात बता
गौरैया तू नाच दिखा।