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घटना के तौर पर / राम सेंगर

जीवन से रू-ब-रू
अब तक जो जिया उसे और-और रून्ध कर
एक नई शक़्ल दे कुम्हार !

आँखों की गोखरू
निकाल कर हथेली पर
रखे-रखे घूम, झूम,
घटना के तौर पर
कभी न कभी कूदेगा
पर्वत से क्षण का लँगूर !
जीवनगत-सच की
इस उफनाती धार में
फेंक कर स्वयँ को
अनुभूतियाँ इकट्ठी कर
गुम्बद का मौन
मुखर होना है
एक दिन ज़रूर !

बदली के गूदड़ फैलावों में
समाधान खोज रहा
जो लँगड़ी प्यास का
उस देशाचार को नकार !

जीवन से रू-ब-रू
अब तक जो जिया उसे और-और रून्ध कर
एक नई शक़्ल दे कुम्हार !