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घटाएँ / महेन्द्र भटनागर


छा गये सारे गगन पर
नव घने घन मिल मनोहर,
दे रहे हैं त्रास्त भू को
आज तो शत-शत दुआएँ !
देख लो, कितनी अँधेरी हैं घटाएँ !

कर रहा है व्योम गर्जन
मंद्र ध्वनि से, वाद्य-सा बन,
चाहता देना सुना जो
आज सारी स्वर-कलाएँ !
देख लो, ये व्योम-चेरी हैं घटाएँ !

अरुक बरसो बिन्दु जल के
तीव्र गति से, ना कि हलके,
विश्व भर में वृष्टि कर दो
दूर हों सारी बलाएँ !
देख लो, कितनी घनेरी हैं घटाएँ !
1949