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घटा वसंती / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

कूकू केर मादक स्वर सुनि‍ते,
सिनेहातुर मन चहकि‍ उठल
उबडुब आनन हरि‍यर कानन,
“घटा वसन्ती” धार बहल
ति‍तली रूनझुन नीरज रससँ
कएलक झंकृत सकल जहान
अपन मनोरथ सि‍द्धि‍ करऽ लेल
प्रेयसी कएल त्रृतुराजक गान
उमड़ि‍ रहल नव तरूणी यौबन
रसस्नात भेलि‍ चंचला-गात
पुष्पा सेजपर मि‍लन भ' रहल
चभटि‍ गेल अछि‍ दुनू पात
जर्जर वृद्धा आ सुखल वृद्धमे
धुरि‍ आएल पुनि‍ कामुक जान
भागि‍ गेलनि‍ धर्मराज देखि‍ कऽ
ऋृतुराजक ई अनुपम शान
हॅसी-खुशीसँ चल-अचल जीवन,
ताकि‍ रहल होरी केर वाट
सबहक सुरभि‍त कांति‍ देखि‍ कऽ
कएलक गान हृदयसँ भाट
रंग-वि‍रंगक अवीर गुलाल संग
नाचि‍ रहल उन्मारदि‍त होरी
सृष्टि मनोहर चक-चक तरूवर
मॉतल चह-चह चहुँदि‍शि‍ जोड़ी
चैतावरक आेंघाएल कलरब
अग्निदेव केर जुआरि‍ बढ़ल
एकल जहानमे कलकल जीवन
मादकता स्वर्गोकेँ जीतल