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घट-बध / चंद्रप्रकाश देवल

पैलपोत थारी डेहळी बड़तां
माथौ टकरीज्यौ बारणा सूं
म्हनै अेलम ई नीं हौ इण बात रौ
के नेह री चढाई चढतां
पगोतियै-पगोतियै बधती जावै डीगाई आपूंआप
सियाळै बधती रात ज्यूं
रैबूद्या डोळ री।
अेक दिहाड़ै ठाह पड़ी
मावूं नीं हूं आरसी में
आंख री बात छोड
वां दिनां
हालता पगां नै कठै दीसतौ आंगणौ
रात-दिन लागता घड़ी-खांण जित्ता
रुतां गजेक लांबी
इळा अेक दड़ी
सूरज अेक लट्टू

आज चोरंगौ ई कोनीं
कोई नापचोप सूं छांग्यौ व्है
तौ कुतरण कठै
इळा आपरौ ततब ओछौ कर दियौ लागै
के काया सूं पवन, पांणी, अगन
काढ लीवी व्है आपरी थोड़ीक पांती

काल री बात है
मांडा रै चोंतरै
जूंण म्हनै मापियौ हौ नेतरा सूं
उण दिन पूरौ हौ
आज रूंख तोकण आया (सीढी)
जणै ठाह पड़ी
तीन च्यारेक बैंत खांपण नीठ हौ

विजोग कूंट सूं आवती लूवां ई
इत्ती छीजत तौ कांई करी व्हैला
व्हौ न व्हौ
कोई निकळग्यौ लागै
सांस पैली म्हारला खोळ्या सूं।