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घट ही में सहर बसवलू हो / रसूल

घट ही में सहर बसवलू हो, तू त पांचों रनिया ।

पांचों रनियां, पच्चीसों बैरनियां
एही में तीन गो सेयनिया हो, तू त पांचों रनिया ।

घट ही में सेल्ही, घट ही मे धागा
घट ही में चौपट करवलू हो, तू त पांचों रनिया ।

ब्रह्मा के मोहलू, विष्णु के मोहलू
शिव जी के भंगिया पियवलू हो, तू त पांचों रनिया ।

बिना जड़ पेड़ लगवलू हो,
बिना फूल भंवरा लोभवलू हो, तू त पांचों रनिया ।

लोभ-मोह के महल बना के,
माया में सबके फंसवलू हो, तू त पांचों रनियां ।

कहत रसूल छब-ढब दिखा के,
सबके नाच नचवलू हो, तू त पांचों रनियां ।