माया की द्वि छ्वीं छक्की छन उमर भरक
औ बैठ घड़ेक भ्वां बैठ घड़ेक।
ज्यू हळकू कैजा खट्टी मिठ्ठी लैजा
कुछ समूण दीजा,समळौण लीजा उमर भरक।
सुपन्यौं कि डाळि जु आंसुन सींजि छै
द्वि पाति छैंछ झपन्याळी कैजा उमर भरक।
भोळ कै बाटा तु कुजाण कै बाटा मैं
द्वि घड़ि त गैलु दगड़ू निभैजा उमर भरक।
औडाळा म बचै मन गळैक भि बुझण नि द्यै
माया कि बातुलि द्वि आखुरून रूझैजा उमर भरक।
स्वाणि मुखड़ि हातुमा ,गात अंग्वाळि म मेरि
बन्द आंख्यों क सुपन्या बिजीं आंख्यों म पुर्यैजा उमर भरक।