घर में रहते बेघर हैं
सामाजिक रस्मों बंधे
दो शरीर
पकाते हैं
खाते हैं
आते हैं
जाते हैं
खर्च के हिसाब पर
कभी कभी बतियाते हैं
घर में रहते बेघर हैं
सामाजिक रस्मों बंधे
दो शरीर
पकाते हैं
खाते हैं
आते हैं
जाते हैं
खर्च के हिसाब पर
कभी कभी बतियाते हैं