नाविक घर लौटता है
सुखी मन से
लौटता है उन दूर-दूर के किनारों से
शान्त बहते निर्झर के पास
जहाँ उसने काटा था फ़सलों को ।
इसलिए अब मुझे भी लौटना चाहिए,
लेकिन मेरे पास क्या है काटने को
अलावा दुःख के ?
घर के ऐ प्यारे किनारो,
(जहाँ मैं कभी बड़ा हुआ था)
क्या तुम चुप कर दोगे
प्रेम की यातनाओं को ?
ऐ मेरे बचपन के वन-प्रान्तो,
जब मैं लौटूँगा
क्या तुम मुझे दोगे
फिर से
शान्ति और विश्राम ?