विष पान किया मैंने जग का
जिससे औरों को अमृत मिले
जिससे औरों को फूल मिलें
मैंने काँटे ही सदा चुने
वह विष अंगों में उबल रहा
वे काँटे उर में कसक रहे
विष पान किया मैंने जग का
जिससे औरों को अमृत मिले
जिससे औरों को फूल मिलें
मैंने काँटे ही सदा चुने
वह विष अंगों में उबल रहा
वे काँटे उर में कसक रहे