जीवन भर दुख सहा, दुख सहकर
जीवन भर झेली पीड़ा रोकर
जो शांति सुखी को मिलती है
वह मरण शांति हो मेरी
है आज समाप्ति सुख-दुख की
आख़िरी हिचकियाँ ये मेरी
है आज रुदन का अंतिम दिन
आख़िरी सिसकियाँ ये मेरी
जाने किस परदेसी जन की
आँखें तेरे तन लख कर के
इस कुंज-भवन में पड़ा हुआ
छलछला आएँगी करुणा से
जो शांति थकित को मिलती है
वह मधुर शांति हो मेरी