क्या हुआ अगर किसी को घर की याद आती है
और वह उसे देश कह कर देशप्रेमी हो जाता है?
या कि उसे लोगों के चेहरों के साथ बाँध कर
निजी चेहरे हों तो (गीति-काव्यकार?)
या कि (जिस-तिस के हों तो)-चलो-मानववादी?
याद मुझे भी आती है : इस से क्या कि जिस को आती है
वह दूसरों की भाषा में घर नहीं है?
दृश्य : परिस्थितियाँ, ऋतुओं के स्वर, सौरभ, रंग;
गतियों के आकार-जैसे हिरन की कूद
या सारस की कुलाँच
या छायाओं के जाल-डोरों में से
किरण-पंछियों की सरकन?
क्या हुआ
अगर मेरी यादों की भूमि
वह (कल्पित) भूमि नहीं है जिसे भाव-भूमि कहते हैं, वरन्
वह है जिस पर भावना और कल्पना दोनों टिकते हैं :
गोचर अनुभवों की भूमि?
अगर मेरा घर
वैसा नहीं है जिसे सिर्फ़ सोचा जा सकता है, वरन्
वैसा है जिसे देखा, छुआ, सूँघा, या चखा जा सके?
चाहे सिर्फ़ मेरी आँखों से, मेरे स्पर्श, मेरी नासा,
मेरी जीभ से? क्या हुआ?
मुझे भी याद आती है
घर की, देश की, एकान्त अपने की
अपनी हर यात्रा में :
उस से अगर यात्रा रुकती नहीं
या यह यायावर क्षेत्र-संन्यास नहीं लेता
तो क्या हुआ?...
24 अक्टूबर, 1970