मैं यदि मिथ्या आरोपों से
डर कर आत्मसमर्पण कर लूं
तो फिर मेरे लोकगीत का
घर घर गायन कौन करेगा?
मेरा गीत नहीं है ऐसा
जिसकी तुम सब करो समीक्षा
पहले खुद को देखो फिर तुम
लेना मेरी अग्नि परीक्षा
मेरी सृजनशीलता देखो
सीता-सी है पतित पावनी
इसका अपने अप्तर्मठ से
फिर निष्कासन कौन करेगा?
मेरा है यह दोष कि मैंने
मौलिकता कि बाँह गही है
जो भी मेरे मन में आई
खुलेआम वह बात कही है
मैं ही अगर झूठ बोलूंगा
कठिन परिस्थितियों से डरकर
मेरी वरदानी वाणी को
फिर अभिवादन कौन करेगा?
उन फूलों को कौन पूछता
जिन में बसी सुगंध नहीं है
जिनके पास गन्ध है उस पर
कोई भी प्रतिबंध नहीं है
गति अवरोधक बनकर मेरी
राहें तुम क्या रोक सकोगे
मैंने चलना छोड़ दिया तो
राह सुहागन कौन करेगा?