झूठ से लड़कर
जिंदगी की धूप में तपकर
थक-हारकर
लौटती हूँ
तो घर बाहों मेंभर लेता है
डाँटता है
समझाता है
इतनी भाग-दौड़
इतनी मगज़मारी क्यों
क्या मेरे लिए?
झूठ से लड़कर
जिंदगी की धूप में तपकर
थक-हारकर
लौटती हूँ
तो घर बाहों मेंभर लेता है
डाँटता है
समझाता है
इतनी भाग-दौड़
इतनी मगज़मारी क्यों
क्या मेरे लिए?