आँखें मुंदने के बाद, न जाने किस मोह में,
पहुँच गयी आत्मा उसी घर की देहरी पर,
दरवाज़े के पार पेड़ के नीचे,
डूबी थी जश्न में दोस्तों की टोली,
गुज़र रहा था हर हाथ से होकर खिलखिलाता जाम,
उठा रहे थे लुत्फ़ वे फलों और जूस का,
और गाते हुए कर रहे माहौल गुलज़ार
सच, सभी की आँखों में एक दूसरे के लिए
तैर रहा था प्यार।
मैं रह न सकी और सुनने लगी बातें उनकी,
बोला कोई — कल से होगा फिर से वही सब,
समन्दर और रेतों का सफर
तो की किसी ने लहरों के उफनने से
पहले ही नीड़ के निर्माण की बातें,
तो बोला कोई — कल भी होगा आज सा ही,
पर यक़ीनन आज से मीठा
खनका उम्मीदों से भरा उन सबका स्वर,
’आने वाला कल’ और वे खो गए ख़ुशी में,
’आने वाला कल’ रुंधे हुए गले से वे बोले,
और बीते हुए कल को वे
बिसरा चुके थे,
बसन्त अभी उनकी ज़िन्दगी का हिस्सा था,
मेरा ही तो बस भूला हुआ क़िस्सा था,
’आने वाला कल और आज’ वे रोए
और मैं विराम हुआ कल थी
मेरे अन्दर मचा हुआ था हौला,
पर मेज़पोश बिछा हुआ था बिना हिले,
पूरी तरह से भूली हुई, थरथराती हुई मैं,
रुक नहीं सकती थी, और
जा रही थी बेमन से,
मैं गुज़र रही थी अपने ही कमरे में,
जो, बिछड़ चुकी थी अपने प्यार से,
अपने संसार से,
मैं गुज़र रही थी
जैसे एक प्यारे मेहमान की यादें,
जो आया, रुका और अन्तत: एक दिन
चला ही गया.
जैसे वह जाने के लिए और
मोह के धागे तोड़ने के लिए ही आया था
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : सोनाली मिश्र
और अब पढ़िए कविता मूल अँग्रेज़ी में
At Home
When I was dead, my spirit turned
To seek the much-frequented house
I passed the door, and saw my friends
Feasting beneath green orange-boughs;
From hand to hand they pushed the wine,
They sucked the pulp of plum and peach;
They sang, they jested, and they laughed,
For each was loved of each.
“I listened to their honest chat:
Said one: "To-morrow we shall be
Plod plod along the featureless sands,
And coasting miles and miles of sea."
Said one: "Before the turn of tide
We will achieve the eyrie-seat."
Said one: "To-morrow shall be like
To-day, but much more sweet."
"To-morrow," said they, strong with hope,
And dwelt upon the pleasant way:
"To-morrow," cried they, one and all,
While no one spoke of yesterday.
Their life stood full at blessed noon;
I, only I, had passed away:
"To-morrow and to-day," they cried;
I was of yesterday.
I shivered comfortless, but cast
No chill across the table-cloth;
I, all-forgotten, shivered, sad
To stay, and yet to part how loth:
I passed from the familiar room,
I who from love had passed away,
Like the remembrance of a guest
That tarrieth but a day.