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घर से निकल के / सुशील साहिल

घर से निकल के जब वह तेरे दर पर आ गया
गोया समझ ले फूल के बिस्तर पर आ गया

ख़ामोश रहने का मुझे अच्छा सिला मिला
पहुँचा पकड़ के अब वह मेरे सर पर आ गया

वो हक़पसन्द शे 'र तो कहता रहा, मगर
इलज़ाम फिर भी आज सुख़नवर पर आ गया

बेटी जवान होते ही ऐसा लगा मुझे
रोका पहाड़ जैसे मेरे सर पर आ गया

माँ का दुपट्टा जैसे ही सर से हटा मेरे
दर्दो-अलम का शम्स मेरे सर पर आ गया

सड़कों के कुछ निशान रहें या नहीं रहें
'साहिल' का लिक्खा नाम तो पत्थर पर आ गया?