{{KKCatK avita}}
एक घर था
जिसे एक रोज छूट जाना था
पता भी न हुआ हमें
और देखते ही देखते बदल गयी
उसके भीतर की हवा
हाथ जो खोलते थे प्रतीक्षा में
सामने का दरवाजा
कहाँ गये......?
एक चौकी थी
एक कुर्सी
एक रसोईघर
एक बरामदा
एक छज्जा बचपन की किताबों
और पुरानी गठरियों से भरा
मेरे बैठने की जगह पर अब धूल थी
और सामने एक परदा था
और उसके पीछे स्मृतियाँ थी.....