झर-झर
झरता है निर्झर
जिस की गूँज वह पट है
जिस पर घाटी की लय बुनी है
मुझ को छाये है घनी छाँह जो
इसी लय की एक मुरकी है।
(1976)
झर-झर
झरता है निर्झर
जिस की गूँज वह पट है
जिस पर घाटी की लय बुनी है
मुझ को छाये है घनी छाँह जो
इसी लय की एक मुरकी है।
(1976)