जोड़ों में दर्द
बोझ से उसकी झुकी कमर
बेचैन तबीयत की
वो शायरी थी यारो,
सुर्ख़ी थी इबारत में
बातों में कुछ कसक-सी
घायल एक सिपाही की
वो डायरी थी यारो,
मासूम एक ख़्वाब के
पीछे वो चल पड़ा
कितनी अजीब उसकी
यायावरी थी यारो,
लहरें उठान पर
सहमी-सी थीं हवाएँ
और बीच समन्दर में
उसकी तरी थी यारो,
फिर तिलमिला गए
थी खोट उनके मन में
बातें ज़ुबाँ पे उसकी
लेकिन खरी थीं यारो,
था हाले वक़्त बंजर
सूखे थे होंठ उसके
फ़स्ले उम्मीद लेकिन
बिलकुल हरी थी यारो ।