बारिश खींच रही है
इसके पतले- पतले हाथ
सूरज भी उठा रहा है इसे
सहारा दे-देकर ऊपर की ओर
मिट्टी ने भी सौंप दी है इसे
खाने को अपनी पूरी थाल
फिर भी उठा नहीं पाती
यह अपने पॉंव
आलस मन से सोयी रहती है
जमीन के आस-पास ।
बारिश खींच रही है
इसके पतले- पतले हाथ
सूरज भी उठा रहा है इसे
सहारा दे-देकर ऊपर की ओर
मिट्टी ने भी सौंप दी है इसे
खाने को अपनी पूरी थाल
फिर भी उठा नहीं पाती
यह अपने पॉंव
आलस मन से सोयी रहती है
जमीन के आस-पास ।