रात घिरेगी
दूर पहाड़ी पर...!
हँसते नभ पर मैं
चित्र रचूँगा औ पेड़ों से बात करूँगा
दूर पहाड़ी पर
गाऊँगा खुले कंठ से
घिरी रात में!
रात घिरेगी
दूर पहाड़ी पर...!
हँसते नभ पर मैं
चित्र रचूँगा औ पेड़ों से बात करूँगा
दूर पहाड़ी पर
गाऊँगा खुले कंठ से
घिरी रात में!