स्त्री-सजन हे ! घुरि चलू अपना गाम
पुरूष-हे सजनी ! घुरि कियै जायब गाम।
पुरूष-गामक जीवन भरल निराषा
नगरक चानी सोना 
होइछ जोगार जतय भरि पेटक
छोड़ब तकरा कोना
दिन आ‘ राति बरोबरि चकमक, गाम पड़ल सुनसान। हे सजनी....
स्त्री- दैत ठेहुनिया बाल सुरूज
गामक आंगनमे आबय 
मह-मह पवनक मन्द झकोरा
भोरे-भोर जगाबय 
सुमनक संग हुलसित सन भमरा, दू तन एक परान। सजन हे....
पुरूष - सब रंग आजन सब रंग बाजन 
सब किछु भेटै मोल 
सदिखन रही हेरायल सजनी 
मितवा टोलक टोल
बैरीक जान हाथमे राखू, खर्चा चाहे पान। हे सजनी....
स्त्री- मइयाँ सागरि बाबा हिमगिरी
साम-चकेबक खेल
रहि-रहि मोन पड़ैये निष्छल
संगी साथिक खेल 
स्वर्ग उदास नगर के पूछय, गाम हमर सुखधाम।। सजन हे....