Last modified on 23 मई 2018, at 12:36

घूँघट तनिक उघारो! / यतींद्रनाथ राही

धरे हाथ माथे पर बैठे
ऐसे तो मत
हिम्मत हारो!

बीत गए दिन
चन्दन चर्चित
मेंहदी और महावर वाले
बन्दित-मुखरित-गुंजित पल-पल
गीत प्यार के
मधु-रस-ढाले
नहीं भोर की किरन रिझाती
गिनते नहीं रात के तारे
लगते हैं पथराए जैसे
संवेदन के तन्तु हमारे
पर विकास के महा पर्व का
यह प्रसाद भी तो स्वीकारो!

है विचित्र यह माया नगरी
उलझे हैं मकड़ी के जाले
गले-गले तक डूब रहे हैं
सबको हैं अपने ही लाले
पूँछ हिलाते, पाँव चाटते
नारे-झंडे और तालियाँ
जितनी चाहो
दे सकते हैं
एक साँस में ढेर गालियाँ
ये सब अपने महापुरुष हैं
इनके पाँव पखारो!

पात-पात खटका
खटका है
आहट-आहट शंकाएँ-भ्रम
श्वेत चादरों के पीछे ही
छिपकर बैठे घोर महातम
कौन पंथ दिखलाए किसको?
मिलते हैं
बंचक ही बंचक
भगवानों के महाखोल में
मार कुन्डली बैठे तक्षक
देंगे पिया
नहीं क्या दर्शन?
घूँघट तो तुम
तनिक उघारो!
10.9.2017