आंख छळकै
आंसू ढळकै
कळी खिल नै
फूल मुळकै
चांद हेमाणीं
तपै सूर
नद्यां खळखळै
तारा दूर
जूण रा हरेक पख
बेमाता रा लिख्या
अटल लेख।
दा‘सा कैंवता-
‘‘तै है स्सो कीं..!
धरती रो घूमणो धुरी माथै,
घूमणो माणस रो घरती माथै..
पूरबलै करमां रै मिस.!!’’
अटळ है
दा‘सा री बातां अजै लग
घूमणो-
धरती रो धुरी,
माणस रो घरती माथै।
पण देखूं तो
घूमै अेक बगत में
अेक साथै
केई-केई ठौड़
नाजोगो माणस..
कदै धरती तो कदै मनोमन.!
सोचूं बिसरग्या दा‘सा
बतावणी आ बात..
का फेर बदळग्या
लेख विधना रा..?