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घोंसला / संतोष श्रीवास्तव

इश्क दुआ बन जाता है
जब सहेज लेता है कोई
ढाई अक्षर की इबारत
दिल की किताब पर

संवर उठती है कायनात
सूरज के लाल दरवाजे तक
तोरने बंध जाती हैं
ढोलक पर गाए जाते हैं गीत
अनंत जन्मों के

आंधियाँ ठिठक कर
पुकार उठती हैं
मर्हबा ...मर्हबा

तब कहीं से एक तिनका
उड़ता आता है
और दिल के वीराने में
घोंसला बुन जाता है