Last modified on 26 जून 2013, at 17:45

घोड़े / मिथिलेश श्रीवास्तव

(मकबूल फ़िदा हुसेन के कैनवास को देख कर)

घोड़ों के खुरों से धरती नुचती नहीं है
लगाम के बगैर वे बेलगाम नहीं हुए
घोड़ों के पैरों में नाल नहीं ठोंके
दाँतों के बीच लोहे की जंजीरें नहीं बनाईं
मजबूत धमनियों में लाल खून दौड़ा दिया
देखो एक लय में दौड़ते घोड़ों को देखो उनकी गति को देखो
देखो वह गति मुझे अपनी धमनियों में महसूस होने लगी है
मैं घोड़ों की तरह सपनों की लकीरों पर उड़ने लगा हूँ
यह गति मोनालिसा की मुस्कान की तरह रहस्यमयी नहीं है