चंचल न हूजै नाथ, अंचल न खैंची हाथ ,
सोवै नेक सारिकाऊ, सुकतौ सोवायो जू .
मंद करौ दीप दुति चन्द्रमुख देखियत ,
दारिकै दुराय आऊँ द्वार तौ दिखायो जू .
मृगज मराल बाल बाहिरै बिडारि देउं,
भायो तुम्हैं केशव सो मोहूँमन भायो जू .
छल के निवास ऐसे वचन विलास सुनि,
सौंगुनो सुरत हू तें स्याम सुख पुओ जू .