बहुत करीब उड़ते हैं बादल
पकड़ लो चाहे उछल कर
अटखेलियाँ करते पर्वत रकीकी गोद में
कभी पर्वत के कान में खुजली करते
मूँछ उखाड़ते
कभी गुदगुदाते मोटा पेट
टाँगों में लिपट जाते
बँदर के बच्चे की तरह
चँचल हैं पहाड़ के बादल।
बहुत करीब उड़ते हैं बादल
पकड़ लो चाहे उछल कर
अटखेलियाँ करते पर्वत रकीकी गोद में
कभी पर्वत के कान में खुजली करते
मूँछ उखाड़ते
कभी गुदगुदाते मोटा पेट
टाँगों में लिपट जाते
बँदर के बच्चे की तरह
चँचल हैं पहाड़ के बादल।