चंचल सुन्दर नन्दकुमार गोपी चितचोर प्रेम मनोहर नवल किशोर।
बाजतही मन में बाणरि की झंकार, नन्दकुमार नन्दकुमार नन्दकुमार।।
श्रवण-आनन्द बिछुआ की छंद रुनझुन बोले
नन्द के अंगना में नन्दन चन्द्रमा गोपाल बन झूमत डोले
डगमग डोले, रंगा पाव बोले लघू होके बिराट धरती का भार।
नन्दकुमार नन्दकुमार नन्दकुमार।।
रूप नेहारने आए लख छिप देवता
कोइ गोप गोपी बना कोइ वृक्ष लता।
नदी हो बहे लागे आनन्द के आँसू यमुना जल सुँ
प्रणता प्रकृति निराला सजाए, पूजा करनेको फूल ले आए बनडार।
नन्दकुमार नन्दकुमार नन्दकुमार।।