मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
चइत<ref>चैत्र मास</ref> में बरूआ बिदा भेल, बैसाख पहुँचल<ref>पहुँचा, आ गया</ref> हे॥1॥
जइबो<ref>जाऊँगा</ref> में जइबो ओहि देस, जहाँ दादा अप्पन<ref>अपना, निजी</ref> हे।
उनखर<ref>उनका</ref> चरन पखारी के, हम पंडित होयब हे।
हम बराम्हन<ref>ब्राह्मण</ref> होयब हे॥2॥
जइबो में जइबो ओहि देस, जहाँ नाना अप्पन नाना हे।
उनखर चरन पखारी के, हम पंडित होयब हे।
हम बराम्हन होयब हे॥3॥
शब्दार्थ
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