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चकित हो रहा बबूल / गरिमा सक्सेना

गाँवों के भी मन-मन अब
उग आये हैं शूल
देख चकित हो रहा बबूल

जहाँ कभी थीं
हरसिंगार की, टेसू की बातें
चंपा, बेली के सँग कटतीं
थीं प्यारी रातें

वहीं आज बातों में खिलते
हैं गूलर के फूल

जिन आँखों की जेबों में कल
सपने बसते थे
जो रिश्तों को हीरे-मोती-स्वर्ण
समझते थे

वहीं प्रेम की परिभाषा अब
फाँक रही है धूल

कई पीढ़ियाँ जहाँ साथ में
पलतीं, बढ़तीं थीं
बूढ़े बरगद की छाया में
सपने गढ़तीं थीं

वहीं पिता से बेटा कर्जा
करने लगा वसूल