जो बहुत तरसा-तरसा कर मेघ से बरसा
हमें हरसाता हुआ,
-माटी में रीत गया।
आह! जो हमें सरसाता है
वह छिपा हुआ पानी है
हमारा इस जानी-पहचानी
माटी के नीचे का।
-रीतता नहीं बीतता नहीं।
जो बहुत तरसा-तरसा कर मेघ से बरसा
हमें हरसाता हुआ,
-माटी में रीत गया।
आह! जो हमें सरसाता है
वह छिपा हुआ पानी है
हमारा इस जानी-पहचानी
माटी के नीचे का।
-रीतता नहीं बीतता नहीं।