ओ मूर्ति!
वासनाओं के विलय
अदम आकांक्षा के विश्राम।
वस्तु-तत्त्व के बन्धन से छुटकारे के
ओ शिलाभूत संकेत,
ओ आत्म-साक्ष्य के मुकुर,
प्रतीकों के निहितार्थ।
सत्ता-करुणा, युगनद्ध!
ओ मन्त्रों के शक्ति-स्रोत,
साधना के फल के उत्सर्ग
ओ उद्गतियों के आयाम!
और निश्छाय, अरूप,
अप्रतिम प्रतिमा,
ओ निःश्रेयस स्वयंसिद्ध!