चक्र सुदर्शन जो न तजे, विष कोटि हरे प्रभु नाग नथैया!
ग्वाल सखा सब संग लिए, नित धेनु चरावत कृष्ण कन्हैया।
एक गणूँ कि अनेक तुम्हें, भ्रम होत सदा चित रास रचैया!
मोहन! भेद अभेद लगे, किस भाँति लिखूँ अति दीन सवैया।
चक्र सुदर्शन जो न तजे, विष कोटि हरे प्रभु नाग नथैया!
ग्वाल सखा सब संग लिए, नित धेनु चरावत कृष्ण कन्हैया।
एक गणूँ कि अनेक तुम्हें, भ्रम होत सदा चित रास रचैया!
मोहन! भेद अभेद लगे, किस भाँति लिखूँ अति दीन सवैया।