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चटक विलसित / अशोक वाजपेयी

उस गहरे नीले अंधेरे से
आलोक-स्फुरित होकर आने से पहले
एक दस्तक सुख के द्वार पर,
एक और थपथपाहट आलस्य-भरी
तृप्ति के उद‍गम पर--

गौरैया फुदकती है
दो-तीन बार
अंधेरे पुष्प के उजले प्रस्फुटन के
बाद-


रचनाकाल : 1990