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चट्टान की मुस्कान / दिनेश कुमार शुक्ल

लिख!
आख़िरी पेड़ के तने पर
घाव
अन्तिम नदी की रेत पर
आग
लपटों पर लिख
हवा
लिख हवा की त्वचा पर
चीख़
चीख़ की चाम पर दाग
गरम लोहा

अब लिख
अपनी पुतलियों पर
मैं
मैं पर लिख मैं
उस पर फिर-फिर लिख
मैं

और देख!
और देखकर भी न देख!
चुप्पी में डूबी चट्टान का
धीरे-धीरे बदलना शीशे में
देख!
उसमें उभरता एक चेहरा
चेहरे पर मुस्कान
और बच सके तो बच
और भाग !