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चड़ुचन (चौठचन्द्र) / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

एही बेरूक भादबक बात
चड़ुचन पावनि लगचिऐल छल
छुट्टि चारिदिनुक छल हमरा
गामक दिस धैने हम रस्ता
देखल बाधक बाध
पानि विना धहधह जरैत सब
मड़ुआ, काउनि मकैक
गाछ उठौने हाथ
बनल चातक आकाश तकैत
गद्दड़ि, गम्हड़ी पाण्डुरोग पीड़ित लोककसन
पीअर, लकलक
डोला रहल छल घेंट
छल सुखैल खत्ता मे
टुक टुक मुरझल बहुतो भेंट
बीआ बी0 ए0 जकाँ तकइ छल
आरि धूर बहि गेल पानि मे
सौंस चऽरक चऽर
बूझि पड़इ चोरू दिश केवल
चानी जेना पिटा देने हो
प्रकृति दया सँ द्रवीभूत भै,
अनमन तहिना झलकै लगलइ।
एलइ बाढ़ि कमला, बलान मे
कोशी से छोड़लनि फुफकार
गामक गामे पड़ा पड़ा सब
उजड़ै लागल लोक
कतहु आसरा किछु ने ककरो
केवल डेङी नाव।
माल जाल केँ तकनहुँ हेरनहुँ
बीतो भरि हरिअरी
कतहु ने भेटइ चरबा लेल
धूकल केरा बहुता घर मे
भीतक पर पड़ि गेल
सानल चिक्क सपड़ले रहलइ
के छनैत अछि आब पिड़ुकिआ
के देखैत अछि चौठी चान
नवका छाँछी दही पौरि कै
पानिक द्वारेँ लोक हतास
सीके पर टाङल धैने अछि
बीच पानि मे लोक रहैत’ छि
बान्हि बान्हि कै ऊँच मचान
के की करत?
कोना कै बाँचत?
खिच्चड़ि रान्है साँझ परात
आँखिक देखल दशा कहइ छी
एही बेरूक भादबक बात