Last modified on 20 जुलाई 2018, at 13:06

चढ़े चंग /राम शरण शर्मा 'मुंशी'

देखे अनदेखे अंग
जैसे कुछ चढ़े चंग
तेज़ और तीखे रंग
नित नव उठे तरंग
मुखर किन्तु निस्संग
ऊर्जित उन्मद उमंग
थिरता स्थिर, अभंग
चंचल करवाल, खंग
कट-कट गिरते अनंग
जय जय शिव, जय गंग !