पादाकुलक दोहा -
1.
जनकसुता-क विवाह कुशल युत सविधि भेल सम्पन्न।
राजा रानि मुदित लुटौलनि वसन रतन मनि अन्न॥
2.
लय अनुमति सब सौं, सबकैं दय आशीर्वाद प्रसन्न।
तपक हेतु चलला कौसिक मुनि वन हिमगिरि आसन्न॥
3.
स्वजन समेत अवधपति कैलनि निजपुर चलक विचार।
लय अनुमति वसिष्ठ मुनि सौं पुनि भेला सब तैय्यार॥
4.
देखकहेतु सुनयना रानी घर घर देल हकार।
भय हरषित मन साँठय लगली रंग बिरंग क भार॥
5.
छाँछ क छाँछ दही ओ माँछक डाली छल असुमार।
केरा, चूड़ा कूड़ा भरिभरि लागल ततय कतार॥
6.
पूरी ओ पकवान पिरुकिया मधुर अनेक प्रकार।
भरल चङेरा मेवा मिसरी नाना विधिक अँचार॥
7.
अगनित सन्दुक पौती पेटी भरल रतन मनिहार।
साया साड़ी आँङी लहठी चूड़ी विविध प्रकार॥
8.
रानी हुलसि हलसि सामग्री घर सौं करथि बहार।
जटित रतन मनि रूप सुवर्ण क लोटा बाटी थार॥
9.
तसला बट्टुक घैल सोनहिक डोल गलास अपार।
अमित अश्वरथ, गजरथ, गोरथ परिपूरित उपहार॥
10.
सोन क पावा पासि पलंग क रेसम मृदल निवार।
चद्दरि मृदु मखमल क मनोहर सिरहन फाहादार॥
11.
सोन क खरखरिया ओ महफा लागल जरिक ओहार।
एक एक वर वधू हेतु पुनि वत्तिस बतिस कहार॥
12.
दासी दास टहलनी टहलू पनिहारिनि पनिहार।
नौआइनि दम्पति ओ मनिहारिनि मनिहार॥
13.
लाख सवत्स गाय देलनि ओ बड़द महीसि हजार।
दुइ दिन धरि छल महग भेल सब भारत भरिक बाजार॥
14.
देलनि दान दहेज वस्तु जे नृपति सदार उदार।
गणना करथि गणेश तकर जौं तौं नहिं लागत पार॥
15.
सुमिरि धिया सासुर चलि जैती हयत हमर घर सुन्न।
झरल सुनयना-नयन युगल सौं हर्षजनोर क बुन्न॥
16.
मोद तरंग संग लहरल पुनि धियाविरहभव ताप।
फाटल कोंढ़ समटि नहिं सकली लगली करय विलाप॥
17.
हमर पूर्व पुण्य क फल देलनि धियारतन भगवान।
छली हमर घर सकल जनक बनि नयन चकोरक चान॥
18.
दीप अन्हार घर क ओ आङन सरवर कमल क फूल।
बनल छली नित निकट हमर जे मोद कल्पतरुमूल॥
19.
निरमल मिथिलानगरगगन में चन्द्रचन्द्रिका रूप।
प्रजा कुमुदवन हेतु छली जे अनुखन सुखद अनूप॥
20.
निरखि-निरखि छल नयन जुड़ाइत जनिकविमल मुखठोर।
से सूगा सासुर चलि जैती दोसर देशक ओर॥
21.
के कहि माए आबि लग बैसत, माँथ झारि दय तेल।
हमर टहल कय के आङन में करत सखी मिलि खेल॥
22.
महादेव के आब बनावत शुद्ध माँटिकैं सानि।
देत पिता कैं आसन पूजन सामग्री के आनि?॥
23.
कनितहि धय भरि पाँज धियाकैं लगली कहय समाद।
दाइ! अहाँ पतिघर जाइत छी राखब कुलमरजाद॥
24.
सासु ससूरक टहल करब नित चलब पतिक अनुकूल।
सकल बहिनि मिलि रहब प्रेमसौं जानि धर्म सुखमूल॥
25.
की परिबोधन करू अहाँ छी अपनहि अति बुधियारि।
सदा खुसीमन सौं सासुरवसि राखब सबक पुछारि॥
26.
लहरल नैहर-विरह-अनल उर भहरल तनुक शरीर।
हहरल कोमल कोंढ़ जानकिक झहरल लोचन नीर॥
27.
सकरुण कनइत लखि रानीकैं जनकसुता अकुलाय।
लगली कलपि कहय गरदनि धय कानि-कानि विलखाय॥
28.
माय! अहिंक लग छलहुँ जनसमसौं बेटी अहिंक कहाय।
अहीं कष्ट सहि पोसि बढ़ाओल-सबदिन छलहुँ सहाय॥
29.
कहियो कतहु जाय नहि देलहु राखल देह लगाय।
फेकि रहलि छी कतय? किये हम भेलहुँ आइ बलाय॥
30.
रंग विरंगक नूआ लहठी नवभूषण पहिराय।
नीक निकुत हमरा लय राखत के नितदिन जुगताय॥
31.
चहुदिस आँखि उठाय तकैछी धरती ओ असमान।
कतहु किओ नहि देखि पड़ै अछि माय! अहाँसनि आन॥
32.
पिता समान हमर हित जन क्यौ देखि पड़य नहि आन।
हुनक निकट नैहर छल हमरा माँछक पानि समान॥
33.
बाबू हमर काजवस कहियो बिसरि जाथि जौं नाम।
माय! अहाँ मन पाड़ि देब तौं कहि कहि कोटि प्रनाम॥
34.
भौजी! विसरि जाथि भैया तौं देब अहाँ मन पारि।
बिसरि हमर अपराध अहूँ सब करइत रहब पुछारि॥
35.
सखिजन! अहाँ सभक हमरापर छल नित ममता मोह।
खेपब समय कोन विधि सजनी? पाबि अहाँक विछोह॥
36.
विसरि देव विसरत नहिं सजनी? अहाँ सभक उपकार।
कहियो अहाँ सबहिसौं सजनी! नहि होयत उद्धार॥
37.
सदा अहाँक संग रहि सजनी? सबविधि सबसुख भेल।
हम नहिं किछु कयसकलहुँ सजनी? अपन सखीजन लेल॥
38.
जानि अजानि हमर से सजनी! विसरि देब सब दोष।
तौं होयत जीवन लहि सजनी! हमर हृदय सन्तोष॥
39.
मानव मानवता बुझि सजनी! हमर विनययुत बात।
देखब हमरि माय कैं सजनी! सब जनि साँझ परात॥
40.
देब हमर साती सब सजनी! उद्यम अहाँ धराय।
बिसरि जाथि हमरा जौं सजनी! सुमिरन देब कराय॥
41.
करइति छली विलाप अही विधि चारू राजकुमारि।
चुप कैलनि दय धैर्य सकलविधि आबि परोसिनि नारि॥
42.
सुनि सीताक विलाप ततय नहिं दहलल ककर करेज?।
नहिं ककरा आश्चर्य भेल लखि, अगनित दान दहेज॥
43.
बुझि सुलग्न खरखरिया चढ़ला चारू राजकुमार।
चारु बहिनि महफापर चढ़ली दु्रतगति चलल कहार॥
44.
लय विदाइ चलला दशरथ नृप सजन वसिष्ठक संग।
भेल प्रदिक्षण मृगसमूह ओ फरकल वामा अंग॥
45.
देखि अशुभ शुभ सगुन दुहुविध पूछल मुनिसौं भूप।
कहलनि मुनि विचारि मनसौं फल सगुनक जानि सरूप॥
46.
“फरकल बाम अंग तहि सौं फल होएत किछु उत्पात।
सूचित कैलक मृगक यूथ ई हयत विघ्न सब कात”॥
47.
ई बुझि पुनि चललाह अवधपति, मुदित सहित बरियात।
देल जनक परिजनक संग कहि मधुर वचन अरियात॥
48.
छमव समधि? अहिठाम आबि जे सबविधि भेल कलेश।
ने हमरा सत्कारशक्ति वा ने किछु अवगति लेश॥
49.
जते दूर अरियात होय पुनि मिलन तते दिन दूर।
ई लोकोक्ति विचारि मनहि मन मानि मनोरथपूर॥
50.
सविनय छमा माङि, अभिवादन कय पुनि वारम्बार।
सुतास्नेह सकरुण लोचन मन सहित सकल परिवार॥
51.
कने दूर अरियाति अपन घर घरि अयला मिथिलेश।
प्रत्यभिवादन कय समयोचित दय उत्तर अवधेश॥
52.
सुजन-संग लय मिथिलापुर सौं यावत होथि बहार।
प्रलय मेघवत शब्द भेल ता मानू खसल पहार।
53.
देखि पड़ल विरड़ोक संग पुनि अद्भुत एके प्रकाश।
खसल अबै अछि भानुबिम्ब जनु भेल सबहि कैं त्रास॥
54.
चकित भेल सब लोक ततय छल गगन धूलि सौं छन्न।
पहुँचि गेल ता निकट परशुधर पुरुष तेजसम्पन्न॥
55.
चीन्हि सभय सभ परशुरामकैं, सविनय कयल प्रणाम।
थरथर कपइत भूपति दशरथ अपन सुनौलनि नाम॥
56.
कोटि सूर्यसम तेज जनिक छल, गिरि सुमेरुसन गात।
जन साधारण देखि सकल नहि, निकट करत के बात?॥
57.
भार्गव कुपितहि मन वसिष्ठसौं, पुछलनि सहित घमण्ड।
“सुनलहुँ भेल पूज्य सुरसंघक शम्भुक धनुष त्रिखण्ड॥
58.
ककरि माए जितिया नहिं कैलक? के अविवेक प्रचण्ड।
कयलक धनुष भंग तकरा हम देव परशु सौं दण्ड”॥
59.
सुनि भृगुतनयक अनय कथा मुनि, सहितविनय नयनिष्ठ।
जनहित सुचित उचित तहिकालक बजला वचन वसिष्ठ॥
60.
“मुनिवर! शान्तहृदय सौं देखी, सबहिक गुन ओ दोष।
प्रतीकार सविवेक करक थिक, सहसा करी न रोष॥
61.
होय क्रोध सौं मोह, मोह सौं स्मृति होइत अछि भ्रष्ट।
तहि सौं बुद्धि नास, पुनि तहिसौं होइछ कार्य विनष्ट॥
62.
नरकक तीन दुआरि कहल अछि, क्रोध लोभ ओ काम।
तीनू में पुनि बढ़ल चढ़ल अछि क्रोध विपत्ति क धाम॥
63.
उत्तमजन ई जानि करै छथि तैं नित तीनू क त्याग।
विप्र क श्वेत सुयशपटपर थिक तामस कारिख दाग॥
64.
सिद्धि क चारि उपाय-साम ओ दान, भेद पुनि दण्ड।
साधथि सकल काज सामहि सौं मुनिजन विगतघमण्ड॥
65.
नहिं हो सिद्ध साम सौं तौं पुनि-तखन दान पुनि भेद।
दण्डक करी प्रयोग अन्त में, कहय शास्त्र ओ वेद॥
66.
अपनहि अपन अहित ओ हित सब नहि पर मित्र अमित्र।
तकर हेतु संसार साधु, हो मानस जकर पवित्र॥
67.
सहज शत्रु ओ मित्र बन्धुजन राखि सबहि सौं नेह।
होय सफलता सकल काज में छथि दृष्टान्त विदेह”॥
68.
अहि उपदेशक परशुराम पर किछु नहिं पड़ल प्रभाव।
टरय मेरु पर्वत से सम्भव नहि पुनि जिनक स्वभाव॥
69.
बजला बीचहि वचन काटि पुनि परशुराम भौं तानि।
“हम नहिं कौशिक सदृश भीरु जे लेब कथा सब मानि”॥
70.
लछुमन बजला भाई! हिनक ई वचन सहित अभिमान।
क्षमाशील छथि पिता सहथु तैं मुनि कैं मानि महान॥
71.
किन्तु अहाँ हम देखि रही चुप ककरो अनुचित काज।
तौं अहि सौं बढ़ि की होयत पुनि-वीरक हेतुक लाज?॥
72.
जानि मन क लछुमन क भाव झट-धीर वीर बलधाम।
बजला रघुकुल कमल दिवाकर नवनीरदधुनि राम॥
73.
मुनिवर! अपने थिकहुँ विप्र तैं अपने हमर प्रणम्य।
थिकहुँ किन्तु अपने क वचन ई नहिं कदापि अछि छम्य॥
74.
रघुवंशी त्रिभुवन में ककरो सहि सकैछ की दाप?
पैर क ठोकर सहि सकैछ की सुच्चा गहुमन साप?॥
75.
वीर पुरुष क्यौ सहि सकैछ की? कतहु अपन अपमान।
बैसि रहै अछि सिंहक शिशु की? गजगर्जन सुनि कान॥
76.
चाहत क्यौ सङ्ग्राम विश्व में जे रघुवंशि क संग।
पलहि मात्र में हयत मानु ओ दीपक उपर पतङ॥
77.
तैं कहि दै छी समटि मूँह कैं बाजी वचन सम्हारि।
विन कारण ककरहु सौं जग में व्यर्थ करी नहि रारि॥
78.
नृप-ओ मुनि क निकट में बाज क भेल एतेटा साध?।
कहू विचारि अहीं अहिठाँ अछि ककर कोन अपराध?॥
79.
कैलनि जनक प्रतिज्ञा ई जे “जे शिव धनुष उठाय।
गुन चढ़ाय देता तहि ऊपर तनिकहि करव जमाय”॥
80.
तैं हम धनुष उठाय चढ़ावल गेल हाथ सौं छूटि।
खसल भूमिपर गेल तही छन तीन खण्ड भै टूटि॥
81.
ई अपराध बुझी अपने तौं नहिं कैलहुँ हम जानि।
तैयो लड़ी अहाँ तौं हम छी अपन शरासन तानि॥
82.
हम अवधेश क पुत्र थिकहुँ, छी पिता सहित अहि ठाम।
अपन नाम सौं परशु हँटाकय बुझू हमर पुनि नाम॥
83.
राम क वचन सूनि गूढ़ाशय अनुपम देखि सरूप।
गुनय धुनय लगलाह मनहि मन रहला छन भरि चुप॥
84.
“बुझि पड़ैछ गुन रूप निरखि जनु थिका विष्णु अवतार।
करी परीक्षण अपन धनुष दय” ई थिर कयल विचार॥
85.
बजला- “अहाँ शिवक धनु तोड़ल तैं नहिं करी गुमान।
विष्णु क धनुष उठावी तौं हम बुझी सत्य बलवान॥
86.
अपन पितासौं पाबि धनुष पुनि देलनि हमरा बाप।
शिवक धनुषसौं सै गन वेसी अछि ई विष्णुक चाप॥
87.
एकरा अहाँ चढ़ाय एकी जौं फेकि सकी ई बान।
तौं जानी हमरासौं बेसी अवश अहाँ बलवान”॥
88.
ई कहि धनुषवान दय देलनि, लेलनि राम उठाय।
अनायास कय सज्य ताहि पर बैष्णव बान चढ़ाय॥
89.
परशुराम कैं कहल राम जे अछि अमोघ ई बान।
फेकी कतय? जानि अपराधी ककर हती हम प्रान?॥
90.
सम्प्रति देखि पड़य अहिबानक दूइ लक्ष्य अहिठाम।
की अपनेक मनोजव अथवा की अर्जित तपधाम॥
91.
देखि धनुष सज्जित लज्जित भै परशुराम तहिठाम।
जानि विष्णु अवतार रामकैं सविनय कयल प्रणाम॥
92.
हाथ जोड़ि बजलाह “नाथ! हम गतिबिनु हयब हतास।
होइछ मन जहिठाम करै छी दिन में ततय निवास॥
93.
अछि संकल्प करी निशि में हम नितमहेन्द्रगिरि वास।
फेकि बान तैं करू हमर वरु अर्जित तपहिक नाश॥
94.
प्रायश्चित हमर पापक ई हयत, हयब हम धन्य।
छी अपनेक समक्ष नाथ! हम सबविधि भेल नगन्य॥
95.
अहाँ सधन कैं अधन बनाबी निरधन कैं धनवान।
करी सुमति कैं कुमति अहीं ओ निरमतिमैं मतिमान॥
96.
अहीं सबल कैं अबल बनावी निरबल कैं बलवान।
सब अपराध छमा करु करुणा-वरुणालय भगवान॥
97.
बान छोड़ि झट करू हमर तप-अर्जित लोकक नाश।
जाय करब हम तखन मनोजव सौं महेन्द्रगिरि वास॥
98.
सुनि भगवान वानकैं फेकल भेल मुनिक तप नष्ट।
भार्गव अपन गर्वकैं समटल, नहि मानल मन कष्ट॥
99.
मुनि वसिष्ठ सौं छमा मांगि पुनि धयल हृदयमें साम।
परशुराम बुझि विष्णु रामकैं कय दण्डवत प्रणाम॥
100.
लय आज्ञा गेलाह मनोजव गिरिमाहेन्द्र-प्रदेश।
निरमल अम्बर भेल दशो दिस द्योतित-किरण दिनेश॥
101.
ई विधि रामक चरित देखि अति भेल नृपति कैं हर्ष।
के नहिं होइछ मुदित जगत में लखि पुत्रक उतकर्ष?॥
102.
भेल शान्त सब जन्तु ततय सबजन सुमिरि गणेश।
लय दल-बल कलवल चलला द्रुत अपन नगर अवधेश॥
103.
पहुँचि गेल दोसर दिन साँझहि नगरनिकट बरियात।
लय गेला सब राजपुरुष कय दूरहिसौं अरियात॥
104.
चारू खरखरिया ओ महफा लागल नृपक दुआरि।
ऐली गीत गबैत मुदितमन नगरभरिक सब नारि॥
105.
कौसिल्या कैकेइ सुमित्रा तीनू जनि हरषाय।
लय गेली चारू कनियाँ कै कोवर-भवन चुमाय॥
सवैया -
106.
आइलि गामक गाइनि सौं शुभ सोहर मंगल गान करौलनि
गोड़ लगाय गोसाँउनि कैँ सबसौं, सबकैं जलपान करौलनि।
वस्त्र विभूषण दै अपने, अनकौ सब सौं सनमान करौलनि
दै द्विज कैं धनधान्य हिरण्य, वधूवर सौं पुनि दान करौलनि॥
107.
देखि वधूमुख पूर्णशशीसम आँखि चकोर जकाँ छल-रानिक
श्री मिथिलेशक देल दहेज विभूषण वस्त्र तथा मनिमानिक।
भारहि सौं भरि भेल जते छल आङन ओ घर भूपतिधानिक
चारु कुमारक चारु वधू लखि भेल खुसी मन चारु परानिक॥
अवध समागम जानकी-आदिक चरित बखान।
अम्बचरित में चौदहम सर्ग क ई अवसान॥