चतुरभुज झुलत श्याम हिंडोरे।
कंचन खंभ लगे मणिमानिक रेसम की रंग डोरें॥
उमड़ि घुमड़ि घन बरसत चहुँदिसि नदियाँ लेत हिलोरें।
हरी-हरी भूमि लता लपटाई बोलत कोकिल मोरें॥
बाजत बीन पखावज बंशी गान होते चहुँ ओरें।
जामसुता छबि निरखि अनोखी वारूँ काम किरोरें॥