Last modified on 14 जून 2012, at 23:48

चतुराई / अरविन्द श्रीवास्तव

कँपकँपाती ठंड में आग की बोरसी
दहकती गर्मी में
ताड़ के पंखे
और अँधेरे में लालटेन हैं मेरे पास

लाता हूँ रोज़-रोज़ चोकर-खुद्दी
खिलाता हूँ साग-पात
घर में बकरियों-सी बेटियों को
गाय-सी पत्नी
और घोड़े-से बेटे को

और क्या कर सकता है चतुराई
एक अस्तबल का
फटीचर साईस !