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चतुर चित्रकार / रामनरेश त्रिपाठी

चित्रकार सुनसान जगह में, बना रहा था चित्र,
इतने ही में वहाँ आ गया, यम राजा का मित्र।

उसे देखकर चित्रकार के तुरत उड़ गए होश,
नदी, पहाड़, पेड़, पत्तों का, रह न गया कुछ जोश।

फिर उसको कुछ हिम्मत आई, देख उसे चुपचाप,
बोला-सुंदर चित्र बना दूँ, बैठ जाइए आप।

डकरू-मुकरू बैठ गया वह, सारे अंग बटोर,
बड़े ध्यान से लगा देखने, चित्रकार की ओर।

चित्रकार ने कहा-हो गया, आगे का तैयार,
अब मुँह आप उधर तो करिए, जंगल के सरदार।

बैठ गया पीठ फिराकर, चित्रकार की ओर,
चित्रकार चुपके से खिसका, जैसे कोई चोर।

बहुुत देर तक आँख मूँदकर, पीठ घुमाकर शेर,
बैठे-बैठे लगा सोचने, इधर हुई क्यों देर।

झील किनारे नाव थी, एक रखा था बाँस,
चित्रकार ने नाव पकड़कर, ली जी भर के साँस।

जल्दी-जल्दी नाव चला कर, निकल गया वह दूर,
इधर शेर था धोखा खाकर, झुँझलाहट में चूर।

शेर बहुत खिसियाकर बोला, नाव ज़रा ले रोक,
कलम और कागज़ तो ले जा, रे कायर डरपोक।

चित्रकार ने कहा तुरत ही, रखिए अपने पास,
चित्रकला का आप कीजिए, जंगल में अभ्यास।