डॉ भावना कुँअर का एक हाइकु देखें-
‘सुबक पड़ी
कैसी थी वो निष्ठुर
विदा की घड़ी
क्षण का सत्य -क्षण की अनुभूति -सद्य प्रभाव और शाश्वत सत्य की ओर संकेत-कितना स्पष्ट एवं मनोरम चित्र है ! यह ‘विदा’ किसी विशेष रिश्ते से नहीं बँधी है-अपार विस्तार है -माता,पिता ,भाई, बहन , बन्धु, प्रिय, परिजन -सभी इस विशाल दायरे में आकर समा गए हैं – केन्द्र -बिन्दु है-‘विदा की घड़ी’…अनुपम खूबसूरत हाइकु है