वेणी में
गूंथ मत गुलाब
चन्दन-वन महकने लगा ।
तुम जाने कौन हो गईं
मैं जाने कौन हों गया
मादक स्वर लहरियाँ बजीं
कोलाहल मौन हो गया
वाणी में घोल मत शराब
मेरा मन बहकने लगा ।
बर्फ़ीली रेत में उगे
गर्म-गर्म साँसों के गीत
पिघल उठा पथराया मन
लरज उठी धड़कन में प्रीत
बाँटों मत अधरों से प्यास
मधु-चुम्बन दहकने लगा ।
जीवन की परिधियाँ बढ़ी
हम तुम केन्द्राभिमुख हुए
तिर्यक स्पर्शियाँ खिंचीं
परिवर्तित दुख-सुख हुए
बाँहों में
सिमटा सैलाब
सावन-घन डहकने लगा ।