चन्द्रमोहन की शादी हो गई और दो बच्चे भी और इस होने में चन्द्रमोहन मर भी गया। सामाजिकताएँ प्राय: नैरन्तर्य में कुछ भिन्न होने पर उसके सूत्र तलाशने के लिए बाध्य हैं।
चन्द्रमोहन के सामाजिक नैरन्तर्य में उसका मर जाना कुछ भिन्न है। चन्द्रमोहन अकेले सोने से ऊब गया था नतीजतन उसने शादी कर ली नतीजतन बच्चे हुए नतीजतन चन्द्रमोहन का जीवन सर्वथा सामान्य होता चला गया। चन्द्रमोहन संभवतः रचनात्मक था और वह एक ऐसे समय में था जब रचना से सामान्यता विलुप्त होती जा रही थी। समय के साथ होने के लिए चन्द्रमोहन ने आत्मघात किया क्योंकि जीवन जो सामान्य हो गया था उसकी ही रचना था।
चन्द्रमोहन अब नहीं है यह एक सर्वमान्य तथ्य है और अब चन्द्रमोहन के बीवी और बच्चों को मैं पाल रहा हूं यह एक सर्वमान्य रस। जीवन की संकुचित अवधारणाओं के विराट पैनेपन में यह भाषा वर्जित और अव्यावहारिक हो सकती है लेकिन जब बच्चे मर रहे हों तब माँण से अवैध सम्बन्ध बना लेने में कोई बुराई नहीं है।
ऐसी हास्यास्पद स्थितियों के जाहिर वैभव में चन्द्रमोहन की बीवी मेरी रखैल है और उसके बच्चे मेरे ग़ुलाम। रखैलों और गुलामों के ईश्वर बहुत अजीब होते हैं। मैं जानता हूँ वे मेरे विरुद्ध अदृश्यताओं के सम्मुख प्रार्थनारत हैं। लेकिन फिलहाल मैं ईश्वर की तरह ही ताक़तवर हूँ और इसलिए वह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। लेकिन एक दिन मैं ताक़तवर नहीं रहूँगा। तब चन्द्रमोहन के बच्चे ताक़तवर होंगे और ईश्वर के न्याय और मध्यथता दोनों को ही नकारकर मुझे सज़ा देंगे। यह अलग बात है कि माँएँ प्राय: बच्चों को हिंसा की इजाज़त नहीं देतीं...