(स्तन कैंसर से जूझती महिलाओं को समर्पित)
चन्द्रो,
यानी फलाने की बहु
ढिम्काने की पत्नी
पहली बार तुम्हें चाचा के हाथ में पकड़ी एक तस्वीर में देखा
अमरबेल सी गर्दन पर चमेली के फूल सी तुम्हारी सूरत
फिर देखी
श्रम के मजबूत सांचे में ढली तुम्हारी आकृति
कुए से पानी लाती
खड़ी दोपहर में खेतों से बाड़ी चुगती
तीस किलों की भरोटी को सिर पर धरे लौटती अपनी चौखट
ढोर-डंगरों के लिए सुबह-शाम हारे में चाट रांधने में जुटी
किसी भी लोच से तत्काल इंकार करती तुम्हारी देह
इसी खूबसूरती ने तुम्हें अकारण ही गांव की दिलफेंक बहु बनाया
फाग में अपने जवान देवरों को उचक-उचक कोडे मारती तुम
तो गाँव की सूख चली बूढ़ी चौपाल
हरी हो लहलहा उठती
गांव के पुरुष स्वांग सा मीठा आनंद लेते
स्त्रियाँ पल्लू मुहँ में दबा भौचक हो तुम्हारी चपलता को एकटक देखती
अफवाओं के पंख कुछ ज्यादा ही चोडे हुआ करते हैं
अफवाहें तुम्हे देख
आहें भर बार-बार दोहराती
फलाने की दिलफेंक बहु
धिम्काने की दिलफेंक स्त्री
इस बार युवा अफवाह ने सच का चेहरा चिपका
एक बुरी खबर दी
लौटी हो तुम अपना एक स्तन
कैंसर की चपेट में गँवा कर
शहर से गाँव
डॉक्टर की हजारों सलाहों के साथ
अपने उसी पहले से रूप में
उसी सूरजमुखी ताप में
इस काली खबर से गाँव के पुरूषों पर क्या बीती
यह तो ठीक-ठीक मालुम नहीं
उनके भीतर एक सुखा पोखर तो अपना आकार ले ही गया होगा
महिलाओं पर हमेशा के तरह इस खबर का असर भी
फुसफुसाहट के रूप में ही बहार निकला
चन्द्रो हारी-बीमारी में भी
अपने कामचोर पति के हिस्से की मेहनत कर
डटी रही हर चौमासे की सीली रातों में
अपने दोनो बच्चों को छाती से सटाए
निकल आती है
आज भी बुढी चन्द्रो
रात को टोर्च ले कर
खेतों की रखवाली के लिए
अमावस्या के जंगली लकडबग्घे अँधेरे में|