ज्वालामुखी रहैत
चाँद शीतल छथि
मुदा हिमालय आ
सागर सँ भरल भू?
आगि सन धीपल।
मानव-मानव में मेल नहि
टाका लेल उलटे हम दानव
सुनु कान खोलि चन्द्र जेता सब
चाँद पर गेने की भेल?
जँ छूटल नहिं धरती केर कानब!
-स्वदेश वाणी, 1967, वैद्यनाथ देवघर, सं.प. अब झारखंड